गुरुवार, 25 मई 2017

इन देशों से सीखें पानी बचाना

करते हैं पानी की खेती , कोहरे से करते हैं सिंचाई

"पानी की खेती" कुछ अटपटा सा लग रहा होगा पर यह सच बात है  अमेरिकी देश पेरू सहित कुछ देश जल संरक्षण के प्रति इतने सजग हैं कि वे पानी की खेती करते हैं। आज तक हम सब ने गेहूं, चावल, कपास, सोयाबीन और तंबाकू आदि की खेती देखी सुनी है लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस धरती पर ऐसी जगह भी है, जहां पानी की खेती होती है।  विज्ञान की तरक्की के साथ ही इंसान की तरक्की भी तय होती है और ऐसी ही मोरक्को के लोगों ने रेगिस्तान में पानी की खेती संभव कर इसकी मिसाल पेश की है, वरना कौन सोच सकता है कि रेगिस्तान की बंजर ज़मीन जहां पानी की एक-एक बूंद के लिए लोग तरसते हैं, वहां पानी की खेती भी हो सकती है।
नॉर्थ अफ्रीका के देश मोरक्को में पानी की खेती होती है। यहां हवाओं की नमी को इकट्ठा करने वाली अनूठी तकनीक का इस्तेमाल कर लोगों ने रेगिस्तान की भूमि को पानी से सींचने का काम कर दिखलाया है। इस अनूठी तरकीब से मोरक्को के पांच गाँवों के 400 लोगों को पीने का पानी मिल रहा है।
रेगिस्तान में बड़े-बड़े जाले लगाकर एकत्र करते हैं कोहरा
बंजर टीलों पर लगे बड़े जाल को देखकर आपको कतई अनुभव नहीं होगा कि इस जाल से पानी इकट्ठा करने का काम हो भी सकता है, लेकिन सच्चाई यही है कि मामूली से दिखने वाले इन जालों से कोहरा पकड़ने का काम किया जाता है और फिर इस कोहरे को पानी में तब्दील करने का काम किया जाता है। इन जालों के जरिए ना सिर्फ पीने का पानी मिल रहा है, बल्कि इस बीहड़- रेगिस्तान में पेड़-पौधे उगने लगे हैं। इन जालों में छह महीने तक समंदर से ओस और कोहरा इकट्ठा किया जाता है। खास किस्म के इन जालों पर ओस और कोहरे के कण फंस जाते हैं। उनकी नमी को एक पाइप से जगह-जगह बने छोटे कुओं में पहुंचा दिया जाता है, जिन्हें ठंडा रखा जाता है। ठंड पाते ही नमी पानी में बदल जाती है, जिसे छान कर मनचाहे तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है।
पेरू में भी इसी तरह मिलता है पीने का पानी
पेरू में लगभग 1,20,000 लोग ऐसे हैं जिनकी मूलभूत आवश्यकताएं भी पूरी नहीं हो पातीं। पेरू के एक शहर लीमा, जो रेगिस्तान में बसा हुआ है, में लगभग 20 लाख लोगों के सामने पानी की समस्या है। ये लोग भी कोहरा और ओस पकड़ने वाले जाल से पानी इकट्ठा कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। यहां यह काम वाटर फांउडेशन नाम की एक संस्था ने शुरू किया। यू-ट्यूब पर इस फाउंडेशन द्वारा डाले गए एक वीडियो में क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन के सदस्य डेनियल मीबर बताते हैं कि हम कोहरे का इस्तेमाल करके पीने के पानी के साथ-साथ खेती के लिए ज़रूरी पानी भी इकट्ठा कर लेते हैं। इस क्षेत्र में लगभग 2500 ऐसे लोग हैं जिन्हें पीने का पानी भी नसीब नहीं होता। उन्हें इससे बहुत फायदा हुआ है। इससे पहले लीमा में पानी वाटर ट्रक्स में भरकर आता था और लोग इसके लिए 10 गुना ज़्यादा पैसा ख़र्च करते थे। ये पानी इतना साफ भी नहीं होता था कि इसका इस्तेमाल पीने के लिए किया जाए। शहर में रहने वाली फेलिज़ा विंसेट बताती हैं, ‘हमें वाकई नहीं पता था कि हम किस तरह का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था। हमें तो ये भी नहीं पता था कि ये पानी आता कहां से है। कई बार हमारे पास ऐसा पानी था जो दूषित और गंदा होता था, कभी हमें कई दिनों तक बिना पानी के भी गुजारा करना पड़ता था, इसलिए हमें इस पानी की ज़रूरत थी। पानी की इसी समस्या को दूर करने के लिए क्रिएटिंग वाटर फाउंडेशन ने कोहरे से पानी बनाने की शुरुआत की। अब यहां के लोगों की पानी की समस्या काफी हद तक दूर हो गई है।

इजरायल में भी हवा को निचोड़कर करते हैं सिंचाई

युवा किसानों का देश कहे जाने वाले इजरायल ने खेती से जुड़ी कई समस्याओं पर न सिर्फ विजय पाई है बल्कि दुनिया के सामने खेती को फायदे का सौदा बनाने के उदाहरण रखे हैं। 1950 से हरित क्रांति के बाद इस देश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। इजरायल ने केवल अपने मरुस्थलों को हराभरा किया, बल्कि अपनी खोजों को चैनलों और एमएएसएचएवी (MASHAV, विदेश मामलों का मंत्रालय) के माध्यमों से प्रसारित किया ताकि अन्य देशों के लोग भी इसका लाभ उठा पाएं। इजरायल-21 सी न्यूज पार्टल ने ऐसे की कुछ प्रमुख मुद्दों को उठाया है जिससे अन्न उत्पादन और उसके रखरखाव के लिए पूरे विश्व में इजरायल की तूती बोल रही है। ताल-या वाटर टेक्नोलॉजी ने दोबारा प्रयोग में लिए जाने वाले ऐसे प्लास्टिक ट्रे का निर्माण किया है जिससे हवा से ओस की बूंदें एकत्र की जा सकती है। दांतेदार आकार का ये ट्रे प्लास्टिक को रीसाइकिल करके बनाया जाता है। इसमें यूवी फिल्टर और चूने का पत्थर लगाकर पेड़ों के आसपास इसे लगाया जाता है। रात को ये ट्रे ओस की बूंदों को साख लेता है और बूंदों को पौधों की जड़ों तक पहुंचाता है।



गुरुवार, 18 मई 2017


टॉयलेट फ्लश टंकी में 1 ली० प्लास्टिक बोतल रखकर बच सकता है हजारों लीटर पानी

अमूमन फ्लश से ज़रूरत से अधिक पानी बहता है क्यूंकि परिवार के लगभग सभी सदस्य दिन में दो से पांच बार टॉयलेट का फ़्लश चला ही देते हैं  स्वच्छता  दृष्टिकोण भी चाहिए। किन्तु हर बार पूरा फ्लश चलाने की जरूरत हो ही ऐसा जरूरी भी नहीं है।  सामान्यतया एक बार के फ्लश प्रयोग में 5 से 8 लीटर पानी बहता है। किन्तु  अगर हम फ्लश की टंकी में  1 लीटर की प्लास्टिक बोतल में बालू-कंकड़ या पानी आदि भर के डाल देते हैं तो हर एक फ्लश में पूरा 1 लीटर पानी बचा सकते हैं और इस तरह परिवार के सभी सदस्यों के द्वारा हर बार के फ्लश प्रयोग में 1 लीटर पानी बचेगा।  इस तरह पूरे वर्ष में हज़ारों लीटर पानी बचाया जा सकता है दरअसल टंकी में पडी बोतल स्वयं 1 लीटर पानी की जगह occupy कर हर बार फ्लश फ्लो के वॉल्यूम को 1 लीटर कम कर देगी।  इस विधि का तेजी से प्रचार-प्रसार  करके पूरे शहर में करोड़ों लीटर पानी बचाया जा सकता है हर साल , और वह भी बिना दिनचर्या प्रभावित किये हुए क्यूंकि फ्लश में 7 लीटर की जगह 6 लीटर भी पानी प्रयुक्त होगा तो स्वच्छता स्तर पर कोई अंतर  पड़ेगा पर पानी जरूर बचेगा। हाँ फ्लश से रिलेटेड इस बात पर भी ध्यान दें कि कहीं फ्लश का नौब leak तो नहीं हो रहा है। कई बार इस कारण से रात भर में पूरी टंकी खाली हो जाती है

मंगलवार, 16 मई 2017

Policy , Acts & Rules related to water and environment (Jharkhand)

National Water Policy 
The Draft National Water Policy 2012 has been adopted in December 2012 by the National Water Resources Ministry. The policy recognizes that water is a scarce resource and supplies need to be conserved and augmented. It also encourages scientific inter basin transfer of water and the necessity of ensuring supply of potable drinking water to all citizens, preferably through locally available sources, discourages transporting water from long distances, advocates for framework legislation and differential pricing policy regimes, provides for community participation and establishes a role for Panchayats. It also suggests that least water intensive sanitation systems with decentralized sewage treatment plants should be incentivized.

National Water Mission on Climate Change
The National Water Mission has been constituted under the Prime Ministers National Action Plan on Climate Change, to ensure integrated water management helping to conserve water, minimize wastage and ensure a more equitable distribution of water, both within and across the states. It seeks to develop a framework to optimize water use by increasing water use efficiency by 20% through regulatory mechanisms with differential entitlements and pricing. The Mission will also seek to ensure that a considerable share of the water needs of urban areas is met through recycling of wastewater. It also makes a provision for policy interventions to promote enhanced storage of water both above and below ground, rainwater harvesting etc. The Mission aims at optimizing the efficiency of existing irrigation systems, including rehabilitation of system that have been run down and also expand irrigation where feasible with a special effort to increase storage capacity. Incentive structures will be designed to promote water–neutral or water–positive technologies, recharging of underground water sources and adoption of large scale irrigation programs which rely on sprinklers, drip irrigation and furrow irrigation.

Jharkhand State Water Policy 2011
The Jharkhand State Water Policy recognizes water as ”a scarce resource, the right of every citizen to equitable access to water for the fulfillment of basic needs and the necessity for state policy, legislative and program initiatives in protection and enforcement of such rights”. The policy provides for adopting a new framework, restricting the fundamental relationships of the state and water users, creating entitlements of water and incentives for water user organizations for greater involvemen abd participation in management, creating new institutional arrangement at the State Level and at the river basin level to guide and regulate water resources planning and development, reviewing the existing institutional arrangement in the water sector and appropriately restructuring and adjusting them, promoting water efficient technologies and formulating appropriate legislation, rules and notifications to achieve these strategy options. The Policy for domestic water ue aims at ensuring drinking water for all. It provides for adequate domestic water facilities for the entire population, both in urban and in rural areas, to meet their needs. The Government also intends to work out a time bound action plan to augment the live capacity of existing reservoirs by de-siltation or use of other water efficient technologies and management options. The State, through the Pollution Control Board shall draw up a plan for control of pollutant discharges. It emerges that the policy plans for a very robust system of water resource management to achieve the objection of quality, quantity and equitable distribution. It gives priority to domestic water supplies, puts in place a system of tariffs and regulation and also seeks to promote community involvement and people’s participation in planning and implementation of water sector projects including drinking water and sanitation. Page | 14 Study on Environment Assessment and Environment Management Framework for The World Bank assisted water supply projects in the selected Districts of Jharkhand

 Guidelines For Ground Water Use
The Central Ground Water Authority (CGWA) has notified 82 areas for regulation of ground water development. The District Administrative Heads (DC or DM), in case of Administrative Block or Taluka, or the Head of the Municipality (in case of Municipal Area) of the notified areas, have been appointed as ‘Authorized Officers’ by Central Ground Water Authority under Section 4 of the Environmental Protection Act,1986(EPA). Further, Section 4 of the EPA, 1986, provides for regulation of Ground Water development in the Notified areas through district administrative heads, who are assisted by Advisory Committees. The respective Authorized Officers are responsible for issues pertaining to granting of NOC's for ground water withdrawal, checking violations, sealing of groundwater abstraction structures, launching of prosecution against offenders and resolution ofcomplaints. The guidelines provide for abstraction of ground water in Notified and NonNotified areas for various users. 

Water (Prevention and Control of Pollution) Act, 1974 
Section 24 of the Act provides that no person shall discharge any sewage or trade effluents beyond the standards as prescribed by the Board into any stream, river, and well or on land. It also provides that no person shall knowingly add any other substance which is likely to cause an impediment in the flow of any stream leading to aggravation of Pollution. Sections25 and 26 of the Act establishe a mechanism for obtaining the consent of the Pollution Control Board for establish and operating or taking steps to establish any industry, operation or process or any treatment and disposal system, which is likely to discharge sewage or trade effluents into a stream, river, well or land or to begin to make a new discharge of sewage or alter the existing discharge. Waste water has to be treated to the prescribed standards before discharge into water bodies. Sludge from water treatment plants and sewage treatment plants must be properly processed and disposed.

The Water (Prevention and Control of Pollution) Cess Act, 1974
The Act provides that the State Pollution Control Boards and Committees shall levy and collect cess from persons carrying on any industrial activities or local concerned authorities supplying water. The cess shall be assessed on the basis of water consumed by the person or local authority and would also include supply of water. Local Bodies are required to furnish monthly cess returns to the Pollution Control Board and ensure timely payments to avoid interest payment and other penal provisions.

 The Air (Prevention and Control of Pollution) Act 1981
The Act provides for the consent of the State Pollution Control Board for establishing or operating any industrial plant inthe air pollution control area. The Act also prescribes that2T 2Tno person having any industrial plant in an air pollution control area shall discharge emissions of any air pollutants in excess of the standards prescribed by the State Pollution Control Boards. An Industrial plant under the Act is defined as any plantfor industrial or trade purposes and emitting any air pollutants in the environment. The Act also requires compliance of the prescribed standards by project proponents, diesel generating sets and other building construction equipment.

 The Environment (Protection) Act, 1986 
The Act lays down the procedure for the prevention, control and abatement of environmental pollution by regulating the discharge or emission of any environmental pollutant in excess of the standards as may be prescribed from time to time. Contravention of provisions of the Act is punishable by imprisonment up to seven years or fine up to Rs 1 lakh and additional fine up to Rs. 5,000 for every day. Page | 15 Study on Environment Assessment and Environment Management Framework for The World Bank assisted water supply projects in the selected Districts of Jharkhand

 The Wetlands (Conservation and Management) Rules 2010
The Rules prohinit reclamation of wetlands, setting up of new industries, handling hazardous chemicals and wastes, using genetically engineered organisms, solid waste dumping, disposal of untreated effluents, constructions of permanent nature within 50 meters or any other adversely impacting within the wetlands. The Rules also classify wetlands for conservation and list a series of activities that can be undertaken with the prior approval of the state government within the wetlands. In terms of water supply and sanitation, these include withdrawal of water or impoundment, diversion or interruption of water sources within the local catchment area of the wetland ecosystem and treated effluent discharges. The state government is required to ensure that as per the E.I.A. Notification of 2006, an E.I.A is conducted before granting the necessary permissions.

The Hazardous Wastes (Management, Handling and Transboundary Movement) Rules, 2008 The Rules prescribe that every person who is engaged in generation, processing, treatment, package, storage, transportation, use, collection, destruction, conversion, and offering for sale, transfer or activities pertaining to hazardous waste is required to obtain an authorization from State Pollution Control Board. Accordingly, sanitation projects involving the handling of hazardous wastes will have to comply with the Rules.

Bio-Medical Waste (Management and Handling) Rules, 1998 
The Rules apply to all persons who generate, collect, receive, store, transport, treat, dispose, or handle biomedical waste in any form and prescribe the duty of every occupier of an institution generating bio-medical waste (which includes a hospital, nursing home, clinic, dispensary, veterinary institution, animal house, pathological laboratory and blood bank) by whatever name called, to ensure that such waste is handled without any adverse effect to human health and environment after obtaining thenecessary authorization from the Pollution Control Board. The Rules are also applicable to sanitation projects, involving handling of biomedical wastes.

 Municipal Solid Waste Management and Handling Rules 2000
These Rules prescribe the procedures for waste collection, segregation, storage, transportation, processing and disposal of Municipal Solid Wastes and for seeking an authorization from the Pollution Control Boards for the same. The Rules makes it mandatory for all cities to set up suitable waste treatment and disposal facilities by December 31, 2003. The Rules also specify the standards for compost quality, health control and management and closure of land-fills. The Rules are complied by the sanitation projects involving the handling of Municipal wastes. Presently, the Rules are applicable to notified areas only (cities, villages or towns notified as municipalities or notified town areas) but in future may also apply to rural areas, if integrated waste handling facilities are proposed.

शनिवार, 13 मई 2017

सिर्फ 1% वर्षा-जल संचयन से झारखण्ड में संग्रह किया जा सकता है 1.12 TMC (1,12,0000000000 लीटर) पानी

आज देश के विभिन्न शहरों में पानी का संकट खड़ा हो रहा है और यह संकट सतही ओर भूजल दोनों के अभाव से उपजा है। इस संकट से निपटने के लिए हमें गांव के साथ-साथ शहरों में भी जल संग्रहण के विभिन्न तरीकों का उपयोग करना होगा। लेकिन अब सवाल उठता है कि शहरों में इसे कैसे क्रियान्वित किया जाए। दरअसल ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में वर्षा जल संग्रहण का समान अर्थ है। फर्क बस इतना है कि ग्रामीण इलाकों में जल  प्रबधंन कार्यक्रम के जरिए मिट्टी संरक्षण के साथ-साथ जल संग्रहण किया जाता है। वहीं दूसरी ओर शहरी इलाकों में जगह की कमी के कारण छत पर जल संग्रहण करना ज्यादा मुनासिब होता है।
     झारखण्ड में वर्षा जल संचयन का कार्य थोड़ी सी जागरूकता बढ़ने पर बहुत कठिन कार्य नहीं रह जायेगा ।  झारखण्ड राज्य ( कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी )में औसत वार्षिक वर्षा 1400 मिमी होती है अगर हम सिर्फ एक हेक्टेयर भूमि पर गिरने वाली केवल 100 मिमी वर्षा के जल को संग्रहीत कर सकें तो यह आयतन 1 मिलियन लीटर  हो जायेगा, इसी प्रकार यदि हम पूरे झारखण्ड में  होने वाली कुल वर्षा ( 1400 मिमी) का 1 प्रतिशत संग्रह करने में सक्षम हो जाएँ तो 1.12 TMC (ट्रिलियन मीट्रिक क्यूब) अर्थात 1120000000000   लीटर पानी पानी बचा सकते हैं। शहरी क्षेत्रो में वर्षा जल संचयन के तरीके ग्रामीण इलाकों में तो वर्षा जल संचय करना नहीं पर शहरी क्षेत्रों में जहाँ जमीन की कमी होती है वहां निम्न तरीके अपनाये जा सकते हैं-
(1) निष्क्रिय हो चुके पेय जल कुओं/ सिचांई कुओं की मदद से (2) ख़राब पड़े बोरवैल या नलकूप की मदद से


 (3) पुनर्भरण शाफ्ट की मदद से (4) पुनर्भरण पिट (गङ्ढा) द्वारा (5) पुनर्भरण खाई द्वारा

शुक्रवार, 12 मई 2017

“जल का डिजिटिल हल” : मोबाईल एप्लिकेशन "जल संचयन"



डाउनलोड करें  मोबाईल एप्लिकेशन "जल संचयन" और जानें जल संरक्षण से जुड़े  पहलुओं को

        हमारी दिनचर्या को आसान बनाने तथा विभिन्न सूचनायें सहजता से प्राप्त करने के लिए हमारे देश सहित पूरी दुनिया में विभिन्न अनुप्रयोगों युक्त करोड़ों मोबाइल एप्लीकेशन मौजूद हैं और नित नए लाखों मोबाईल एप अस्तित्व में आते भी जा रहे हैं। सूचनाओं की डिजिटल होती दुनिया में इसी प्रकार की पहल केंद्र सरकार के जल संसाधन विभाग ने जल सरंक्षण की दिशा में लोगो को जागरूक करने , उनकी विभिन्न शंकाओं का समाधान करने तथा अपने इलाके में जल उपलब्धता जानने के लिए एक मोबाईल एप "जल संचयन " लांच किया है।  अतः पानी बचने की दिशा में कार्य करने वाले या  इस विषय को लेकर स्थानीय आंकड़े जानने की इच्छा रखने वाले या फिर इस दिशा में कार्य करने वाले शोधार्थियों और पत्रकारों के लिए यह एप उपयोगी है। यहाँ यूजर अपनी सुविधानुसार हिंदी या अंगेजी भाषा चुन सकता है।     

माननीय प्रधान मंत्री द्वारा शुरू की गई डिजिटल इंडिया पहल  के अनुसरण में  केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने मौजूदा विभिन्न तकनीकों के माध्यम से आम आदमी को वर्षा जल संचयन  के लिए प्रेरित करने के लिए यह पहल करते हुए उक्त मोबाइल एप्लिकेशन "जल संचयन" विकसित किया  है। मोबाइल ऐप का शुभारंभ पिछले साल नई दिल्ली में विज्ञान भवन में जल संसाधन मंत्री,  सुश्री उमा भारती ने किया था।

"जल संचयन" एप  उपयोगकर्ता के अनुकूल एंड्रॉइड मोबाइल एप्लिकेशन है जिसमें एकल प्लेटफॉर्म में वर्षा जल संचयन के सभी घटकों को शामिल किया गया है। यह उपयोगकर्ता को स्थान की स्थिति और इंटरैक्टिव मॉड्यूल से  जानकारियां हासिल करने की अनुमति देता है, उपयोगकर्ता को उसके गांव /शहर में  संभावित वर्षा जल के आंकड़े उपलब्ध करने के साथ किसानो को भी जानकारी देता है कि किस फसल में प्रति इकाई क्षेत्रफल कितने पानी की आवश्यकता है।  इसके अलावा, यह योजनाबद्ध डिजाइन, लाभ और संचालन और रखरखाव पहलुओं की भी जानकारी प्रदान करता है. यह जल संरक्षण और जलापूर्ति के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों, एजेंसियों, तकनीकी संस्थानों और  जमीनी संगठनों के संपर्क सूत्रों की जानकारी भी प्रदान करता है। यूजर अपने स्थान को फीड कर मौजूदा भूजल स्तर , वर्षा की स्थिति , नक़्शे आदि पल भर के अंदर प्राप्त कर सकता है। 

डाउनलोड करें

इच्छुक एंड्रॉइड मोबाईल फ़ोन उपभोक्ता Google Play स्टोर में जाकर  "जल संचयन " / “ Jal Sanchayanटाइप करके एप को खोजे और Install कर लें।